सर की तरफ से तैराकी करने से गर्दन की हड्डियां क्षतिग्रस्त हो सकती : डॉ.गुरुराज सांगोंडीमठ

द वीकली टाइम्स, शुक्रवार 7 अप्रैल 2023, नई दिल्ली। स्विमिंग करते समय कई सावधानियों की जरूरत होती है नही तो हो सकती हैं बड़ी दुर्घटना। ऐसा ही मामला आया इंडियन स्पाइनल इंजुरी सेंटर वसंत कुंज हॉस्पिटल में जिसका सफल रोबोटिक सर्जरी कर नया जीवन दिया है। 26 साल की पर्ल नामक महिला को यह कभी अंदाजा भी नहीं रहा होगा, कि स्विमिंग पूल में की गई उनकी एक गलती से उनका पूरा जीवन बर्बाद हो सकता है। वह स्विमिंग पूल में जब तैरने के लिए उतरी तो उन्होंने सिर के बल छलांग लगाई जिससे उनकी गर्दन की हड्डियां छतिग्रस्त हो गईं और इस कारण वह लकवाग्रस्त की स्थिती में चली गईं, फिलहाल इंडियन स्पाइनल इंजरीज़ सेंटर (ISIC) के सर्जनों के अनुभव और विशेषज्ञता के परिणामस्वरूप वह अब अपनी लकवाग्रस्त स्थिति से उबर चुकी है और पहले से काफी हद तक ठीक भी हो चुकी हैं। ‌

इंडियन स्पाइनल इंजरीज़ सेंटर (ISIC) के मिनिमली इनवेसिव और स्पाइनल डिफ़ॉर्मिटी रोबोटिक सर्जन के सीनियर कंसल्टेंट और यूनिट चीफ डॉ.गुरुराज सांगोंडीमठ ने स्विमिंग पूल मे घायल हुई लड़की पर्ल की रीढ़ की सर्जरी सफलतापूर्वक किया उन्होंने प्रेस वार्ता  में  बताया कि लोग जागरूकता की कमी के कारण स्थिर पानी में सिर के बल कूदते हैं, जिससे उनकी गर्दन की हड्डियां छतिग्रस्त हो जाती हैं और वो चोट लगने से लकवाग्रस्त की स्थिति में चले जाते हैं। उन्होंने बताया की हम स्पाइनल फ्यूजन और फिक्सेशन सर्जरी करते हैं जिसमें आमतौर पर लगभग डेढ़ से तीन घंटे लगते हैं। इसके बाद मरीज को ठीक होने में डेढ़ से छह महीने का वक्त लग सकता है। 

पर्ल के बारे में बात करते हुए डॉ. गुरुराज ने बताया कि लोगों में तैराकी को लेकर जागरूकता की कमी के चलते, जब वे स्थिर पानी में सिर के बल छलांग लगाते हैं तो उनकी गर्दन की हड्डी टूट जाती है और पर्ल के मामले में भी यही हुआ, उसने जैसे ही स्विमींग पूल में छलांग लगाया उसकी गर्दन अंदर से छतिग्रस्त हो गई, फिर उसे आईएसआईसी में लाया गया और गहन मूल्यांकन के बाद यह बात पता चली कि गर्दन की हड्डी रीढ़ से जुड़ी हुई थी और वहीं पर फ्रैक्चर हो गया था। इस स्थिति में फ्रैक्चर को स्थिर करने, दबाव को दूर करने व रीढ़ की हड्डी को डीकंप्रेस करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता थी। जिसके बाद यह जटिल सर्जरी की गई और उसे बचाया गया। आईएसआईसी की रिपोर्ट के अनुसार आज दुर्घटना के बाद तैराकी के कारण भी बहुत संख्या में मरीज आ रहे हैं।

पर्ल ने आईएसआईसी के विशेषज्ञों का धन्यवाद देते हुए बताया कि, वे अब वेंटिलेटर और आईसीयू से बाहर आ गई हैं और धीरे-धीरे बैठने भी लगी हैं। उन्होंने बताया कि आईएसआईसी के प्रयासों के बाद अब मेरे ऊपरी अंगों की शक्ति धीरे-धीरे वापस आ गई है, लेकिन निचले अंगों की शक्ति आने में समय लग रहा है, परंतु फिजियोथेरेपी से मुझे अब निचले अंगों में धीरे-धीरे कुछ सनसनी महसूस हो रही है। डॉ. गुरुराज की सलाह पर मैं सख्ती से रिहैबिलिटेशन करवा रही हूं और मुझे अब विश्वास है कि मैं व्हीलचेयर के बाद धीरे-धीरे चलने भी लगूंगी।

 इंडियन स्पाइनल इंजरीज़ सेंटर के चीफ स्ट्रेटजी ऑफिसर सुश्री सुगंध अहलूवालिया ने कहा कि, इस प्रकार के चोटों को लेकर हमें लोगों को उपचार और देखभाल के बारे में जानकारी देना होगा। हम एक वन-स्टॉप सेंटर के रूप में उभरे हैं जो ऑपरेशन के बाद शारीरिक और मानसिक शक्ति को फिर से वापस लाने के लिए रोगियों की समग्र देखभाल करता है। हमने सर्वश्रेष्ठ-इन-क्लास पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) सुविधाएं भी प्रदान करने में एक जगह बनाई है। पोस्ट-ऑपरेटिव थेरेपी और देखभाल के महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने इस असाधारण पुनर्वास विभाग को विकसित किया है। डॉ. गुरुराज ने लोगों में जागरूकता पर जोर देते हुए बताया कि, आज कल का युवा वर्ग जो तैराकी के शौकीन हैं, वे यदि पूल, तालाबों, नहरों और कुओं में कूदते है उन्हे पानी की गहराई का अंदाजा जरूर लगाना चाहिए।

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