बरसों बाद लौटा हूँ

द वीकली टाइम्स,बुधवार 22 अप्रैल 2020, नई दिल्ली। 



बरसों बाद लौटा हूँ,
अपने पुराने कमरे में।
हर सिम्त सजा है गर्द ओ गुबार का सन्नाटा।
दर-ओ-दिवार पे कुछ महकते, उलझे हुए ताने बाने।
बिस्तर पे कुछ माज़ी की सिलवटे।
मेज़ पे खामोश पड़ी है,
मीर, कबीर, गुलज़ार, रूमी और गीता।
और यहीं कहीं ...
खलाओं में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद।
शायद मेरे कमरे में...
आज भी कोई रहता है।


(अनवर नाज़िश, जमशेदपुर)



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